पांच जिलों से घिर हुआ है संतकबीरनगर संतकबीरनगर जिला 1997 में अस्तित्व में आया था। खलीलाबाद इस जिले का मुख्यालय है। बस्ती और सिद्धार्थनगर के कुछ हिस्सों को अलग कर संतकबीरनगर नाम से जिला सृजित किया गया। 2008 में नए परिसीमन के बाद संतकबीरनगर संसदीय क्षेत्र का सृजन हुआ। यह उत्तर में सिद्धार्थनगर व महराजगंज जिलों से सटा है तो दक्षिण में अंबेडकरनगर से घिरा हुआ है। पूरब में गोरखपुर जिला से जुड़ा है तो पश्चिम में बस्ती जिले से घिरा हुआ है।
पांच विधानसभा क्षेत्र इन जिलों तक फैला
संतकबीरनगर लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र हैं। संतकबीरनगर का खलीलाबाद, घनघटा, मेंहदावल विधानसभा क्षेत्र, गोखपुर जनपद का खजनी विधानसभा व अंबेडकरनगर का आलापुर विधानसभा क्षेत्र। साढ़े उन्नीस लाख मतदाता करेंगे इस बार अपने सांसद का चुनाव
संतकबीरनगर लोकसभा क्षेत्र में 1944454 मतदाता अपने लोकसभा प्रतिनिधि का चुनाव करेंगे। सांसद का चुनाव करने वालों में 1057141 पुरुष मतदाता तो 887227 महिला मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगी। 86 थर्ड जेंडर भी मतदान कर अपने सांसद का चुनाव कर सकेंगे। इस संसदीय क्षेत्र मतें 3589 सर्विस मतदाता भी अपने सांसद का चुनाव करेंगे। इसमें 3512 पुरुष व 77 महिला सर्विस वोटर शामिल हैं।
दलित-मुस्लिम आबादी अच्छी खासी संतकबीरनगर लोकसभा क्षेत्र में दलित व मुस्लिम वोटरों की तादाद अच्छी खासी है। इसके अलावा ब्राह्मण, यादव, क्षत्रिय मतदाता भी निर्णायक स्थिति में है। गोरखपुर जिले से सटे क्षेत्र में निषाद वोटर्स की संख्या चुनावी निर्णय में महत्वपूर्ण साबित होने वाली संख्या में हैं।
अब संतकबीरनगर में सुलग रही ब्राह्मण-क्षत्रिय वर्चस्व की आग गोरखपुर में दशकों से चली आ रही ब्राह्मण-क्षत्रिय वर्चस्व की लड़ाई वैसे तो पूरे पूर्वांचल में दिखती रही है लेकिन गोरखपुर के बाद इस बार यह संतकबीरनगर में साफ तौर पर दिखने लगी है। जूताकांड के बाद यहां दोनों वर्ग के बीच तलवारें साफ खिंची हुई दिख रही, जिसका नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ सकता है। दरअसल, भाजपा के निवर्तमान सांसद शरद त्रिपाठी ने बीते 6 मार्च को जिला योजना समिति की बैठक में बीजेपी सांसद राकेश बघेल से कहासुनी के दौरान जूतों से पिटाई कर दी। सांसद-विधायक के बीच जूतमपैजार सुर्खियां बनी। इस कांड के बाद ब्राह्मण-क्षत्रिय एक दूसरे के खिलाफ हो गए। बीजेपी ने भी मौके की नजाकत को समझते हुए कोई कार्रवाई नहीं की। बीते दिनों चुनावी कार्यक्रम में शरद त्रिपाठी के विरोध में कार्यकर्ताओं ने तोड़फोड़ किया था, आलम यह कि प्रदेश अध्यक्ष को अपना कार्यक्रम रद करना पड़ा। इसके बाद सांसद शरद का टिकट काट दिया गया। टिकट कटने के बाद ब्राह्मण मतदाता बीजेपी से नाराज है तो ठाकुर मतदाता खुश।
दो बाहुबलियों के आमने-सामने होने से लड़ाई और हुई रोचक संतकबीरनगर लोकसभा क्षेत्र में दो बाहुबलियों की लड़ाई ने चुनाव को रोचक बना दिया है। महागठबंधन के प्रत्याशी कुशल तिवारी उर्फ भीष्म शंकर तिवारी बाहुबली पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी के सुपुत्र हैं। दो बार सांसद रहे कुशल तिवारी को सजातीय वोटरों पर खास भरोसा है। वहीं समाजवादी पार्टी के मूल वोटबैंक यादव-मुसलमान व बसपा के दलित वोटरों के समीकरण पर लड़ाई में दिख रहे हैं। कुशल को भाजपा से ब्राह्मणों की नाराजगी भी फायदेमंद दिख रही है।
उधर, कांग्रेस ने सपा के पूर्व सांसद बाहुबली भालचंद यादव को मैदान में उतार दिया है। भालचंद को अपनी जाति के मतदाताओं के अलावा क्षेत्र के अन्य मतदाताओं विशेषकर मुसलमानों में भी खासी पकड़ है। बसपा में रहने की वजह से दलित मतदाताओं में भी वह सेंधमारी करने में सक्षम है। भालचंद यादव दो बार सांसद रह चुके हैं। टिकट नहीं मिलने से सपा छोड़कर कांग्रेस के सिंबल पर मैदान में हैं।
भाजपा को निषाद वोटरों पर भरोसा, लड़ाई को बनाया त्रिकोणीय भारतीय जनता पार्टी ने इस बार संतकबीरनगर संसदीय क्षेत्र से अपने नए दोस्त निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के पुत्र व गोरखपुर उपचुनाव में सपा से सांसद चुने गए प्रवीण निषाद को मैदान में उतारा है। अगड़ी जातियों के समर्थन के साथ भाजपा को इस बार ओबीसी व निषाद वोटरों पर भरोसा है। भाजपा ब्राह्मण वोटरों को सहेजने की कोशिश के साथ उनकी नाराजगी से हो रहे नुकसान को निषाद वोटरों से भरपाई करने की कोशिश में है। वैसे सांसद शरद त्रिपाठी का टिकट काटकर पार्टी ने देवरिया से सांसद के पिता रमापति त्रिपाठी को उतारकर डेमेज कंट्रोल की भी कोशिश की है। माना जा रहा है कि ठाकुर-भूमिहार, ब्राह्मण व निषाद वोटरों को एकजुट कर बीजेपी यह सीट अपने पाले में करने की जुगत में है। पार्टी की आंतरिक गुटबाजी के बीच बाहर से भेजे गए प्रत्याशी को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, सभी समीकरणों को दरकिनार कर बीजेपी को मोदी फैक्टर पर सबसे अधिक भरोसा है जो लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने में मदद करेगा।